युग्मक संलयन के बाद भ्रूणकोश में दो संरचनाएं परिवर्धन करना शुरू कर देती हैं| इनमें से द्वितीयक केंद्रक अर्थात प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक विकसित होकर भ्रूणपोष बनाता है और युग्मनज विकसित होकर भ्रूण बनाता है| भ्रूणकोश के अंदर स्थित प्रतिमुख व सहायक कोशिकाएं निषेचन के शीघ्र बाद ही नष्ट हो जाती हैं|
भ्रूणोद्भिद या भ्रूण का परिवर्धन(Embryogeny or development of Embryo )-
सर्वप्रथम युग्मनज दो असमान कोशिकाओं में बँट जाता है, एक बड़ी आधार कोशिका(basal cell) तथा दूसरी छोटी शिखाग्र कोशिका(apical cell )|
आधार कोशिका विभाजनों द्वारा 8-10 कोशिकाओं की एक रचना बनाती है जिसे निलम्बक(suspensor) कहते हैं| जैसे-जैसे निलंबक लंबाई में वृद्धि करता है, यह परिवर्धन करते हुए भ्रूण को भ्रूणकोश के भीतर पर्याप्त दूरी तक धकेल देता है| जहां यह चारों ओर भ्रूणपोष से घिर जाता है| भ्रूणपोष पोषण उत्तक है जो परिवर्धन करते हुए भ्रूण का पोषण करता है| निलंबक की सबसे निचली कोशिका जो कि भ्रूणीय कोशिका के निकट रहती है हाइपोफिसिस कहलाती है| यह विभाजन करके मूलांकुर का अग्रभाग बनाते हैं| इन कोशिकाओं की अगली 4 कोशिकाएं बीजपत्र तथा प्रांकुर बनाते हैं| इस प्रकार युग्मनज बार-बार विभाजित होकर भ्रूण में बदल जाता है|
भ्रूणपोष का परिवर्धन-
भ्रूणपोष एक त्रिगुणित(3n) ऊतक है जो दोहरे निषेचन के बाद त्रिक संलयन द्वारा बने भ्रूणपोष केंद्रक से विकसित होता है|
भ्रूणपोष का मुख्य कार्य वृद्धि करते हुए भ्रूण को पोषण प्रदान करना होता है|
भ्रूणपोषी एवं अभ्रुणपोषी बीज-
सभी बीजों में भ्रूणपोष नहीं होता| कुछ द्विबीजपत्री बीजों में भ्रूणपोष का समस्त खाद्य पदार्थ बीजपत्रों में आकर इकट्ठा हो जाता है जिससे बीजपत्र मोटे व मांसल हो जाते हैं| इस प्रकार के बीजों को अभ्रुणपोषी बीज कहते हैं| जैसे- चना, मटर, सेम आदि| इसी कारण इन बीजों में भ्रूणपोष नहीं मिलता है| इसके विपरीत कुछ बीजों में खाद्य पदार्थ बीजपत्रों में इकट्ठा होने की बजाय भ्रूणपोष में ही भरा रहता है ऐसे बीजों को भ्रूणपोषी बीज कहते हैं| जैसे- एक बीज पत्री बीजों में|
बीज का निर्माण-
भ्रूण के पूर्ण रूप से विकसित होने पर बीजाण्ड बीज में बदल जाता है| बीजांड में वृद्धि करने के साथ-साथ दोनों बाहरी अध्यावरण सूखकर एक रक्षक आवरण बनाते हैं, जिसे बीज आवरण कहते हैं| इनमें से बाह्य अध्यायवरण को बीजचोल तथा अंदर के अध्यावरण को टेगमेन कहते हैं|
फल निर्माण-
फल वास्तव में परिपक्व अंडाशय को कहते हैं| अंडाशय की भित्ति, फल भित्ति का निर्माण करती है|
फल भित्ति को तीन मुख्य भागों में बांटा जा सकता है:-
(1) बाह्य फल भित्ति(Exocarp)
(2) मध्य फल भित्ति तथा (Mesocarp)
(3)अन्तः फल भित्ति (Endocarp)
कभी-कभी अंडाशय के अतिरिक्त पुष्पासन, दलपुंज तथा बाह्यदलपुंज भी फलभित्ति बनाने में सहायता करते हैं| ऐसे फल बिना निषेचन के ही बनते हैं, इसलिए इन्हें असत्य फल भी कहते हैं जैसे- सेब
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