जनन की प्रक्रिया में नर एवं मादा युग्मकों के आपस में मिलने की क्रिया को निषेचन कहा जाता है| निषेचन के फल-स्वरुप भ्रूण बनता है| पुष्पीय पौधों में यह क्रिया निम्न प्रकार से होती है:
(1) पराग कणों का वर्तिकाग्र पर अंकुरण-
परागण के समय परागकण वर्तिकाग्र पर पहुंचकर वातावरण व वर्तिकाग्र से नमी अवशोषित कर अंकुरण करना शुरू कर देते हैं| अंकुरण के द्वारा परागकणों से पराग नलिका निकलनी शुरू हो जाती है| यह पराग नलिका वर्तिका से होती हुई अंडाशय तक पहुंचती है| इसी पराग नलिका से होते हुए दोनों नर युग्मक भी अंडाशय के बीजाण्ड के पास पहुँच जाते हैं|
(2) पराग नली का बीजांड में प्रवेश-
पराग नली का बीजांड में प्रवेश तीन अलग-अलग स्थानों से होता है:
(a) अंडद्वारी प्रवेश(porogamy) ---> अंडद्वार से प्रवेश होता है
(b) निभागी प्रवेश(chalazogamy) ----> निभाग से प्रवेश होता है
(c) मध्य प्रवेश(mesogamy)-----> अध्यावरणों से प्रवेश होता है
(3) पराग नलिका का भ्रूणकोश में प्रवेश-
पराग नलिका वर्तिका से होकर भ्रूणकोश तक पहुंचने के लिए बीजांडकाय में से प्रवेश करती है| यह निम्नलिखित तीन प्रकार से होती है-
(a) अंड कोशिका का एक सिनरजिड के बीच में से
(b)भ्रूणकोश की भित्ति व एक सिनरजिड के बीच में से
(c) एक सिनरजिड को बेधकर उसमें से प्रवेश करती है
(4) नर एवं मादा युग्मकों का समेकन-
भ्रूणकोश में प्रवेश करने के बाद पराग नलिका का सिरा घुलकर विघटित हो जाता है| नर युग्मक भ्रूणकोश में स्वतंत्र हो जाते हैं| भ्रूणकोश में मुक्त होने के बाद एक नर युग्मक अंड कोशिका से संलग्न हो जाता है| वास्तव में यही लैंगिक क्रिया है, जिसे सत्य निषेचन कहते हैं| दूसरा नर युग्मक भ्रूणकोश के केंद्र में स्थित द्वितीयक केंद्रक (ध्रुवीय कोशिकाओं) से संलयन करता है| इस क्रिया को त्रिक संलयन कहते हैं| इस प्रकार निषेचन की क्रिया पूरी हो जाती है|
द्विनिषेचन या दोहरा निषेचन(Double fertilization)-
पुष्पीय पौधों में एक ही भ्रूणकोश में दो बार निषेचन होता है| पहला नर युग्मक अंड कोशिका से मिलता है जिसे सत्य निषेचन कहते हैं| परंतु दूसरा नर युग्मक ध्रुवीय केंद्रकों के साथ मिलता है| अतः क्योंकि निषेचन की प्रक्रिया दूसरी बार हो रही है इसलिए इसे द्विनिषेचन या दोहरा निषेचन कहा जाता है|
द्विनिषेचन का महत्व-
द्विनिषेचन का अध्ययन सर्वप्रथम नवाशीन ने सन 1898 में किया था तथा बताया कि द्विनिषेचन के फल-स्वरुप भ्रूणपोष बनता है| यह भ्रूणपोष ही बढ़ते हुए भ्रूण का पोषण करता है जिसके कारण भ्रूण का विकास होता है|
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