Biology Mantra: लघुबीजाणुजनन(Microsporogenesis)

Monday, September 14, 2020

लघुबीजाणुजनन(Microsporogenesis)

लघुबीजाणुजनन(Microsporogenesis) 
लघुबीजाणुजनन में प्रत्येक लघुबीजाणु मातृ कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन के बाद चार अगुणित लघुबीजाणु बनते हैं| ये  चारों लघुबीजाणु विभिन्न प्रकार से चतुष्को के रूप में जुड़े रहते हैं| ये चतुष्क  निम्न  पांच प्रकार के होते हैं| जैसे- 
(a) रैखिक (linear )
 (b) समद्विपार्श्विक (isobilateral )
(c) क्रॉसित (decussate)
(d) T- आकारीय (T- shaped )
(e) चतुष्कफलकीय (tetrahedral)
 चतुष्क से चारों परागकण अलग हो जाते हैं|  कुछ पौधों में यह परागकण अलग नहीं होते हैं तथा संयुक्त रुप से एक साथ रहते हैं | जैसे - मदार में परागकोष के सभी चतुष्क इकट्ठे हो जाते हैं, जिसे परागपिण्ड ( pollinium ) कहते हैं |

परागकण या लघुबीजाणु की संरचना-
प्रत्येक परागकण या लघुबीजाणु एक अतिसूक्ष्म संरचना है जिसका व्यास   0.025mm से 0.115 तक होता है| यह एक कोशिकीय रचना है| जिसके चारों ओर द्विस्तरीय बीजाणु-भित्ति होती है| भीतरी स्तर पतला व लचीला होता है इसे अन्तः चोल(intine ) कहते हैं| बाह्य स्तर मोटा,दृढ, भंगुर व क्यूटिनयुक्त होता है| इसे बाह्य चोल (exine) कहते हैं| बाह्य चोल विभिन्न रूपों में होता है| यह  मस्सेदार, शूलमय या जालिका रूपी होता है| बाह्य चोल पर एक या अधिक वृत्ताकार धब्बे से होते हैं जिनको जनन छिद्र कहते हैं|
 परागकण या लघुबीजाणु के अंकुरण करने पर परागनलिका इन्हीं छिद्रों द्वारा बाहर निकलती है| एकबीजपत्रियों  में केवल 1 जनन छिद्र होता है जबकि रेननकुलस में 15-30 तक जनन छिद्र  होते हैं|
 परागकण के बाह्य चोल में स्पोरोपोलेनिन नामक पॉलिसैकेराइड होता है| यह भौतिक, रासायनिक एवं जैवीय अपघटन के लिए प्रतिरोधी होता है| इसी कारण परागकण जीवाश्म के रूप में परिरक्षित रह सकते हैं|

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