लघुबीजाणुजनन(Microsporogenesis)
लघुबीजाणुजनन में प्रत्येक लघुबीजाणु मातृ कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन के बाद चार अगुणित लघुबीजाणु बनते हैं| ये चारों लघुबीजाणु विभिन्न प्रकार से चतुष्को के रूप में जुड़े रहते हैं| ये चतुष्क निम्न पांच प्रकार के होते हैं| जैसे- (a) रैखिक (linear )
(b) समद्विपार्श्विक (isobilateral )
(c) क्रॉसित (decussate)
(d) T- आकारीय (T- shaped )
(e) चतुष्कफलकीय (tetrahedral)
चतुष्क से चारों परागकण अलग हो जाते हैं| कुछ पौधों में यह परागकण अलग नहीं होते हैं तथा संयुक्त रुप से एक साथ रहते हैं | जैसे - मदार में परागकोष के सभी चतुष्क इकट्ठे हो जाते हैं, जिसे परागपिण्ड ( pollinium ) कहते हैं |
परागकण या लघुबीजाणु की संरचना-
प्रत्येक परागकण या लघुबीजाणु एक अतिसूक्ष्म संरचना है जिसका व्यास 0.025mm से 0.115 तक होता है| यह एक कोशिकीय रचना है| जिसके चारों ओर द्विस्तरीय बीजाणु-भित्ति होती है| भीतरी स्तर पतला व लचीला होता है इसे अन्तः चोल(intine ) कहते हैं| बाह्य स्तर मोटा,दृढ, भंगुर व क्यूटिनयुक्त होता है| इसे बाह्य चोल (exine) कहते हैं| बाह्य चोल विभिन्न रूपों में होता है| यह मस्सेदार, शूलमय या जालिका रूपी होता है| बाह्य चोल पर एक या अधिक वृत्ताकार धब्बे से होते हैं जिनको जनन छिद्र कहते हैं|
परागकण या लघुबीजाणु के अंकुरण करने पर परागनलिका इन्हीं छिद्रों द्वारा बाहर निकलती है| एकबीजपत्रियों में केवल 1 जनन छिद्र होता है जबकि रेननकुलस में 15-30 तक जनन छिद्र होते हैं|
परागकण के बाह्य चोल में स्पोरोपोलेनिन नामक पॉलिसैकेराइड होता है| यह भौतिक, रासायनिक एवं जैवीय अपघटन के लिए प्रतिरोधी होता है| इसी कारण परागकण जीवाश्म के रूप में परिरक्षित रह सकते हैं|
No comments:
Post a Comment