Biology Mantra: गुरुबीजाणुजनन(Megasporogenesis)

Monday, September 21, 2020

गुरुबीजाणुजनन(Megasporogenesis)

गुरुबीजाणुजनन(Megasporogenesis)-
गुरु बीजाणु मातृ कोशिका से अर्धसूत्री विभाजन के उपरांत गुरुबीजाणु बनने की क्रिया को गुरु बीजाणु जनन कहते हैं| बीजांड का परिवर्धन बीजांडासन की सतह पर एक छोटे से शंक्वाकार उभार के रूप में होता है| इस उभार की समस्त कोशिकाएं एक ही प्रकार की व मेरिस्टमैटिक होती हैं| उभार तेजी से वृद्धि करके कोशिकाओं की एक संरचना  बनाता है जिसे बीजांडकाय कहते हैं| इसके आधार अर्थात निभाग की ओर से अध्यावरण बनते हैं| शीर्ष की ओर से दोनों अध्यायवरण एक दूसरे से अलग हो जाते हैं| वहां बीच में एक छिद्र बन जाता है जिसे बीजांडद्वार कहते हैं|
        बीजांड या गुरुबीजाणुधानी की प्रारंभिक अवस्था में ही बीजांडकाय के शीर्ष की ओर एपिडर्मिस के ठीक नीचे की ओर एक कोशिका अन्य कोशिकाओं की अपेक्षा आकार में बड़ी होकर प्राथमिक आर्कीस्पोरियल कोशिका बनाती हैं| इस कोशिका का कोशिकाद्रव्य सघन तथा केन्द्रक अधिक स्पष्ट होता है| यह विभाजित होकर बाहर की ओर प्रारंभिक भित्तीय कोशिका और अंदर की ओर गुरुबीजाणुजनन कोशिका बनाती है| भित्तीय कोशिका 1, 2 या कई बार विभाजित होकर भित्तीय ऊतक बनाती है किंतु कभी-कभी अविभाजित भी रहती है| अब गुरुबीजाणु मातृ कोशिका द्वारा चार अगुणित गुरुबीजाणु कोशिकाएं बनाती हैं| यह चारों कोशिकाएं एक रैखिक चतुष्क  में रहती हैं| इनमें से सबसे नीचे की कोशिका आकार में बड़ी होकर सक्रिय गुरुबीजाणु कोशिका बनाती है और ऊपर कि शेष तीनों कोशिकाएं विघटित हो जाती हैं| सक्रिय गुरुबीजाणु कोशिका भ्रूणकोष या मादा युग्मकोद्भिद में परिवर्तित होती है|

मादा गैमीटोफाइट या मादा युग्मकोद्भिद या भ्रूणकोश(Female Gametophyte or Embryo sac)-
 क्रियाशील गुरुबीजाणु जनन कोशिका मादा युग्मकोद्भिद की प्रथम कोशिका है| यह अर्धसूत्री विभाजन द्वारा चार अगुणित गुरुबीजाणु कोशिकाएं बनाती है| इनमें से सबसे नीचे की कोशिका आकार में बड़ी होकर सक्रिय गुरुबीजाणु कोशिका बनाती है और ऊपर कि शेष तीनों कोशिकाएं नष्ट हो जाती है|
         सक्रिय गुरुबीजाणु परिवर्धन करके भ्रूणकोश या मादा युग्मकोद्भिद  में विकसित हो जाता है| इसका केंद्रक एक समसूत्री विभाजन द्वारा दो संतति केंद्रक बनाता है| ये विपरीत ध्रुवों पर आ जाते हैं|दो बार विभाजित होने पर प्रत्येक संतति केंद्रक से दोनों ध्रुवों पर 4 केंद्र बन जाते हैं|इस प्रकार भ्रूणकोश में 8 केंद्रक हो जाते हैं| प्रत्येक ध्रुव से एक-एक केंद्रक भ्रूणकोश के बीच में आ जाता है| ये ध्रुव केंद्रक कहलाते हैं| समेकित होकर ये  द्वितीयक केंद्रक बनाते हैं| बीजांडद्वार की ओर स्थित तीनों केंद्रक कोशिका भित्ति से घिर जाते हैं और अंड समुच्चय बनाते हैं| अंड समुच्चय के बीच स्थित कोशिका अंड कोशिका या अंडाणु  कहलाती है और पार्श्व  में स्थित फ्लास्क के समान दोनों कोशिकाएं सहायक कोशिकाएं कहलाती  हैं| इनके विमुख सिरे निभाग की ओर स्थित तीनों केंद्रक तीन प्रतिमुख कोशिकाएं या एंटीपोडल कोशिकाएं बनाते हैं| अतः एक पूर्ण विकसित प्रारूप आवृत्तबीजी भ्रूणकोश में 7 कोशिकाएं होती हैं|

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